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कृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में भगवान की पूजा आधी रात को की जाती है। धर्म ग्रंथों में तो जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण के विधान का उल्लेख भी किया गया है। वैष्णव संप्रदाय के अनुसार आधी रात के समय जब कृष्ण जन्माष्टमी हो, तो उसमें कृष्ण की पूजा करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवदगीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। कृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। जन्माष्टमी में स्त्री-पुरुष 12:00 बजे तक व्रत रखते है। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है।

जन्माष्टमी व्रत विधि / व्रत पूजन विधि

उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातः काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें –

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ 🌿अब मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के सूतिकागृह नियत करें। तत्पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हों। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें- 🌿‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’

जन्माष्टमी उपवास

अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है। स्कंद पुराण के अनुसार जो भी व्यक्ति जान-बूझकर कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलयुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाईस (28) वें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो, तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है– श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत, जो मनुष्य नहीं करता, वह जरूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करने का विधान है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो, तो जयंती नाम से संबोधित की जाएगी। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो, तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। वशिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असंपूर्ण भी हो, तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो, तो उसमें कृष्ण की पूजा से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। 🌿

जागरण

धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण का विधान भी बताया गया है। कृष्णाष्टमी की रात को भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मंत्र नमो भगवते वासुदेवाय का जाप अथवा श्रीकृष्णावतार की कथा का श्रवण करें। श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि से आरती करें तथा भगवान को भोग में निवेदित खाद्य पदार्थों को प्रसाद के रूप में वितरित करके अंत में स्वयं भी उसको ग्रहण करना चाहिए। वैसे तो जन्माष्टमी में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं। 🍃

कृष्ण चालीसा

॥ दोहा ॥ बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥ जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥ ॥ चौपाई ॥ जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥ कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥ मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥ करि पय पान, पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥ मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥ सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥ लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥ लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥ दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥ नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥ करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥ केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥ मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥ महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥ भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥ दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥ असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥ दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥ प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥ लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥ भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥ निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥ मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥ राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥ निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥ तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥ जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥ तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥ अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥ सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥ नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥ खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥ ॥ दोहा ॥ यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥ 🍃

जन्माष्टमी का प्रारम्भ एवम् महत्व

जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्म काल से ही मनायी जा रही है। जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का 5200 वर्ष से भी अधिक पुराना अनुष्ठानिक उत्सव है। वैदिक कालक्रम के अनुसार 2023 में यह भगवान श्री कृष्ण का 5250वाँ जन्मोत्सव है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी सभी कृष्ण मन्दिरों का अत्यन्त महत्वपूर्ण उत्सव है। भगवान कृष्ण से सम्बन्धित शहरों और कस्बों के लिये जन्माष्टमी घर-घर मनाया जाने वाला उत्सव है। ऐतिहासिक शहरों में, मथुरा, वृन्दावन और द्वारका के लोग कृष्ण जन्माष्टमी को अपने परिवार के सदस्य के जन्मोत्सव की तरह हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। 🍃🍃जन्माष्टमी के देवी-देवता जन्माष्टमी के उत्सव पर जिस मुख्य देवता की पूजा की जाती है, वे हैं भगवान श्री कृष्ण। चूँकि जन्माष्टमी भगवान कृष्ण का ही जन्मदिवस है, इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप की पूजा की जाती है। श्री कृष्ण के बालरूप को बाल गोपाल और लड्डू गोपाल के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही भगवान कृष्ण के किशोर रूप की भी पूजा की जाती है। भगवान कृष्ण के अलावा, श्री कृष्ण को जन्म देने वाले माता-पिता अर्थात वसुदेव और देवकी, भगवान कृष्ण का लालन-पालन करने वाले माता-पिता अर्थात नन्द बाबा और माता यशोदा और भगवान कृष्ण के भ्राता बलभद्र (भगवान बलराम) और उनकी बहन सुभद्रा की भी जन्माष्टमी के उत्सव पर पूजा की जाती है। 🍃🍃जन्माष्टमी दिनाँक और समय अमान्त हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार श्रावण (5वाँ माह) की कृष्ण पक्ष अष्टमी (23वाँ दिन) 🍃🍃पूर्णिमान्त हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार भाद्रपद (6वाँ माह) की कृष्ण पक्ष अष्टमी (8वाँ दिन) हालाँकि दोनों कैलेण्डरों में कृष्ण जन्माष्टमी एक ही दिन मनायी जाती है। 🍃🍃जन्माष्टमी त्यौहारों की सूची अधिकांश स्थानों पर जन्माष्टमी का उत्सव दो दिनों तक चलता है। दिन 1 - कृष्ण जन्माष्टमी दिन 2 - दही हाण्डी जन्माष्टमी पर अनुष्ठान एक दिन का व्रत रखना मध्यरात्रि के दौरान बाल स्वरूप कृष्ण की पूजा करना श्री कृष्ण के मन्दिर जाना विशेष रूप से दुग्ध उत्पादों द्वारा मीठे व्यञ्जन बनाना जन्माष्टमी की क्षेत्रीय भिन्नता भारत में अधिकतर लोग चन्द्र कैलेण्डर के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं लेकिन दक्षिण भारत के कुछ मन्दिरों और कुछ क्षेत्रों में कृष्ण जन्माष्टमी सौर कैलेण्डर के आधार पर मनायी जाती है। अधिकांश वर्षों में इन दिनाँकों में एक-दो दिन का भी अन्तर नहीं होता है, लेकिन कुछ वर्षों में चन्द्र कैलेण्डर पर आधारित जन्माष्टमी की दिनाँक और सौर कैलेण्डर पर आधारित जन्माष्टमी की दिनाँक में एक महीने तक का अन्तर आ जाता है। केरल, तमिलनाडु और कर्णाटक के कुछ क्षेत्रों में, कृष्ण जन्माष्टमी को अष्टमी रोहिणी के नाम से जाना जाता है और इसे सौर कैलेण्डर के आधार पर मनाया जाता है। 🍃🍃जन्माष्टमी पर सार्वजनिक जीवन कृष्ण जन्माष्टमी भारत में एक वैकल्पिक राजपत्रित अवकाश है। हालाँकि, अधिकांश सरकारी कार्यालय, विद्यालय और महाविद्यालय कृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक दिवसीय अवकाश रखते हैं। 🍃🍃जन्माष्टमी के समान अन्य त्यौहार अष्टमी रोहिणी - केरल में कृष्ण जन्माष्टमी। दही हाण्डी - भगवान कृष्ण द्वारा खेला जाने वाला पारम्परिक खेल।

कुंजबिहारी जी की आरती

॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जन्माष्टमी पूजा विधि – Janmashtami Puja Vidhi

रात को 12 बजे जल मे काला तिल डालकर स्नान करे तत्पश्चात लड्डू गोपाल या बालकृष्ण मुर्ती की स्थापना करें अब श्री कृष्ण भगवान की मूर्ती को गंगाजल से स्नान कराये इसके बाद श्री कृष्ण के प्रतिमा को शहद, माखन, दूध, केसर अर्थात पंचामृत से स्नान कराये और अंत मे साफ जल या गंगा जल से स्नान कराये। अब आप भगवान श्री कृष्ण को पालना मे बैठाये फल, फूल, माला, तुलसी पत्ता, चंदन, गंगाजल, माखन, चंदन, हल्दी कुमकुम आदि को समर्पित करें अब आप भगवान कृष्ण का पालना गीत गाये – जन्माष्टमी सोहर भगवान कृष्ण के अलावा गाय की भी पूजा करें पूजा के अंत मे ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें

श्री कृष्णा मंत्र – Sri krishna mantra

ॐ श्री कृष्णाय नमः “ओम क्लीम कृष्णाय नमः” “ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः भगवान कृष्ण के अनमोल सुविचार ॐ श्री कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय नमः द्वदेवकीसुत गोविन्द’ हृदयाय नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।।

अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं (भजन) | Achyutam Keshavam Art of living

अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं कौन कहते हैं भगवान आते नहीं तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभं कौन कहते हैं भगवान खाते नहीं बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभं कौन कहते हैं भगवान सोते नहीं मां यशोदा के जैसे सुलाते नहीं अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभं कौन कहते हैं भगवान नाचते नहीं गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं राम नारायणं जानकी वल्लभं Achyutam Keshavam krishn Damodaram