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Pitru Paksha

29 सितंबर,शुक्रवार से पितृ पक्ष शुरू होने जा रहा है और इसका समापन 14 अक्तूबर को होगा। भारतीय संस्कृति में श्राद्ध का विशेष महत्व है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्वक किया हुआ वह संस्कार ,जिससे पितृ संतुष्टि प्राप्त करते हैं। पितृ पक्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है,जो अमावस्या तिथि तक रहता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिजनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उनकी कृपा से जीवन में आने वाली सभी दिक्कतों से भी मुक्ति मिलती है।नकी पूजा करते हैं।

श्राद्ध करना है जरूरी

🐜पितृ या पूर्वज ही हमें जीवन में आई विपरीत परिस्थितियों से उबारने में मदद करते हैं। उनकी यह मदद प्रज्ञा यानि इंट्यूशन के माध्यम से हम तक पहुंचती है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का पक्ष 'महालय' श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस पक्ष में व्यक्ति की जिस तिथि को मृत्यु हुई है उस तिथि के दिन उस मृत व्यक्ति के पुत्र-पौत्रदि द्वारा उसका श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्धभोज में पितरों को कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होकर अपने परिजनों को दीर्घायु, आरोग्य, धन-संपत्ति, स्वर्ग प्राप्ति जैसे सभी सुख प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शास्त्र कहते हैं कि 'पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रः अर्थात- जो नरक से त्राण ( रक्षा ) करता है वही पुत्र है। श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है। जो लोग श्राद्ध कार्य इस शंका से नहीं करते कि 'कौन हैं पितर और कहां हैं' इस शंका का समाधान करते हुए मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं कि 'पितृ सूक्ष्म स्वरुप में श्राद्ध तिथि को अपनी संतान के घर के द्वार पर सूर्योदय से ही आकर बैठ जाते हैं,इस उम्मीद में कि उनके पुत्र-पौत्र भोजन से उन्हें तृप्त क़र देंगे। किन्तु सूर्यास्त होने तक भी पितरों को जब भोजन प्राप्त नहीं होता है तो वे निराश व रुष्ट होकर श्राप देते हुए अपने पितृलोक लौट जाते है।इसीलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने की अनिवार्यता कही गई है। जीव मोहवश इस जीवन में पाप-पुण्य दोनों कृत्य करता है। पुण्य का फल स्वर्ग है और पाप का नरक। नरक में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है। जन्म-जन्मांतर में अपने किये हुए शुभ-अशुभ कर्मफल के अनुसार स्वर्ग-नरक का सुख भोगने के पश्चात जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है। अतः पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके।

देवताओं से पहले पितर

देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता हैं। शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्मविपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।

नोट करें 2023 में श्राद्ध की तिथियां

पूर्णिमा का श्राद्ध: 29 सितंबर 2023 प्रतिपदा का श्राद्ध: 29 सितंबर 2023 द्वितीया का श्राद्ध: 30 सितंबर 2023 तृतीया का श्राद्ध: 1 अक्टूबर 2023 चतुर्थी का श्राद्ध: 2 अक्टूबर 2023 पंचमी का श्राद्ध: 3 अक्टूबर 2023 षष्ठी का श्राद्ध: 4 अक्टूबर 2023 सप्तमी का श्राद्ध: 5 अक्टूबर 2023 अष्टमी का श्राद्ध: 6 अक्टूबर 2023 नवमी का श्राद्ध: 7 अक्टूबर 2023 दशमी का श्राद्ध: 8 अक्टूबर 2023 एकादशी का श्राद्ध: 9 अक्टूबर 2023 मघा श्राद्ध: 10 अक्टूबर 2023 द्वादशी का श्राद्ध: 11 अक्टूबर 2023 त्रयोदशी का श्राद्ध: 12 अक्टूबर 2023 चतुर्दशी का श्राद्ध: 13 अक्टूबर 2023 सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या: 14 अक्टूबर 2023

पितृ पक्ष में कैसे करें पितरों को प्रसन्न, जानिए इस दिन क्या करें और क्या ना करें

🍃धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दिनों में पितरों को याद करना चाहिए और उनकी पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए जिससे वे प्रसन्न होते हैं और अपनों को सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं. साथ ही पितृ पक्ष के दौरान पवित्र शास्त्रों को पढ़ना और मंत्रों का जाप करना शुभ माना गया है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में उनका तर्पण करने की मान्यता है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दिनों में पितरों का श्राद्ध करने से मृत्यु के देवता यमराज सभी जीवों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं जिससे वह उनके परिवार द्वारा किए गए तर्पण को ग्रहण कर सकें. पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही पितर प्रसन्न होकर घर को सुख चैन का आर्शीवाद प्रदान करते हैं.

पितृ पक्ष के दिन क्या करें

🍃पितृ पक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि पर ही उनका श्राद्ध करना चाहिए. 🍃पितृपक्ष में रोज स्नान के समय जल से पितरों को तर्पण करना चाहिए. ऐसा करने से उनकी आत्मा तृप्त हो जाती हैं. 🍃पितृ पक्ष के दौरान घर में साफ सफाई रखनी चाहिए और कचरा घर में नहीं रखना चाहिए. 🍃पितृ पक्ष में पितरों को भोजन प्राप्त हो इसके लिए किसी गाय, कुत्ते या कौए को भोजन कराना चाहिए. 🍃पितृ पक्ष में जिस भी व्यक्ति का श्राद्ध करें, उसकी पसंद का खाना जरूर बनाएं. 🍃पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान दक्षिणा दें. 🍃पितृ पक्ष में कुश का उपयोग करें और कुश की अंगुठी भी पहननी चाहिए. इससे पितर जल्दी प्रसन्न होते हैं.

पितृपक्ष में क्या न करें

🍃पितृपक्ष के दौरान मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि का सेवन करना वर्जित माना जाता है इसलिए इनका सेवन करने से बचें. 🍃पितृपक्ष में अपने पितरों और साथ ही घर के बुजुर्गों का अपमान नहीं करें वरना पितृ दोष से ग्रस्त हो सकते हैं. 🍃पितृ पक्ष में स्नान के समय उबटन, साबुन और तेल आदि चीजों का प्रयोग न करें. 🍃पितृपक्ष में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण आदि करना अशुभ है इसलिए ऐसा करने से बचें. 🍃पितृपक्ष में नए कपड़े न खरीदें और पहनें. यह करना अशुभ हो सकता है. 🍃मूली और गाजर को अशुद्ध माना गया है इसलिए पितृपक्ष के दौरान मूली और गाजर का सेवन न करें. 🍃पितृपक्ष के दौरान किसी से भी लड़ाई झगड़ा न करें और सभी का साथ प्रेस के साथ रहें.

पिंडदान का महत्व

🍂धार्मिक मान्यता अनुसार पितरों का पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे घर में पितृ दोष से हो रहे परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है. पुराणों के अनुसार पितृपक्ष के समय तीन पीढ़ियों के पूर्वज स्वर्ग और पृथ्वी लोक के बीच पितृलोक में रहते हैं. इस समय अगर आप पितरों का श्राद्ध करेंगे तो उन्हें मुक्ति मिल जाति है और वो स्वर्ग लोक चले जाते हैं. पूरे विधि विधान के साथ पिंडदान करने से पितरों का भटकना बंद हो जाता है और उन्हे मुक्ति मिल जाती है. ऐसा करने से घर में पितृ दोष से हो रही परेशानियां दूर होती हैं और सुख -शांति का संचार होता है. Talk to astrologers to know more about Vish Yoga.

श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का अर्थ

पितृ पक्ष में घर-परिवार के मृत पूर्वजों को श्रद्धा से याद किया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। पिंडदान करने का मतलब ये है कि हम पितरों के लिए भोजन दान कर रहे हैं। तर्पण करने का अर्थ यह है कि हम जल का दान कर रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष में इन तीनों कामों का महत्व है। पितृ पक्ष में किसी गौशाला में गायों के लिए हरी घास और उनकी देखभाल के लिए धन का दान करना चाहिए। किसी तालाब में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। घर के आसपास कुत्तों को भी रोटी खिलानी चाहिए। इनके साथ ही कौओं के लिए भी घर की छत पर भोजन रखना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाएं। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। इन दिनों भागवत गीता का पाठ करना चाहिए।

श्राद्ध पूजा की सामग्री:

रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता , पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़गु , मिट्टी का दीया , रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना।

श्राद्ध के साथ-साथ पेड़-पौधे भी लगाएं :

वृक्ष वनस्पतियों से निकले ऑक्सीजन से हम सभी की प्राण रक्षा और पोषण होता है. इस दृष्टि से हमारा भी कर्तव्य बनता है कि वृक्ष वनस्पतियों की कमी न आए.

श्राद्ध के नि यम

: श्राद्ध पक्ष में व्यसन और मां सा हा र पूरी तरह वर्जि त मा ना गया है। पूर्णत: पवि त्र रहकर ही श्रा द्ध कि या जा ता है। श्रा द्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जि त मा ने गए हैं। रा त्रि में श्रा द्ध नहीं कि या जा ता । श्रा द्ध का समय दो पहर सा ढे बा रह बजे से एक बजे के बी च उपयुक्त मा ना गया है। कौओं, कुत्तों और गा यों के लि ए भी अन्न का अंश नि का लते हैं क्यों कि ये सभी जी व यम के का फी नजदी की हैं।

शभविष्यपुराण में 12 तरह के श्राद्ध

नित्य श्राद्ध कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुशा, पुष्प व फल से प्रतिदिन श्राद्ध करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है।

नैमित्तक श्राद्ध यह श्राद्ध विशेष अवसर पर किया जाता है। जैसे- पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन इसे एकोदिष्ट कहा जाता है। इसमें विश्वदेवा की पूजा नहीं की जाती है, केवल मात्र एक पिण्डदान दिया जाता है।

काम्य श्राद्ध किसी कामना विशेष के लिए यह श्राद्ध किया जाता है। जैसे- पुत्र की प्राप्ति आदि।

वृद्धि श्राद्ध यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाता है।

सपिंडन श्राद्ध मृत व्यक्ति के 12 वें दिन पितरों से मिलने के लिए किया जाता है। इसे स्त्रियां भी कर सकती हैं।

पार्वण श्राद्ध पिता, दादा, परदादा, सपत्नीक और दादी, परदादी, व सपत्नीक के निमित्त किया जाता है। इसमें दो विश्वदेवा की पूजा होती है।

गोष्ठी श्राद्ध यह परिवार के सभी लोगों के एकत्र होने के समय किया जाता है।

कर्मागं श्राद्ध यह श्राद्ध किसी संस्कार के अवसर पर किया जाता है।

शुद्धयर्थ श्राद्ध यह श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है।

तीर्थ श्राद्ध यह श्राद्ध तीर्थ में जाने पर किया जाता है।

यात्रार्थ श्राद्ध यह श्राद्ध यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है।

पुष्टयर्थ श्राद्ध शरीर के स्वास्थ्य व सुख समृद्धि के लिए त्रयोदशी तिथि, मघा नक्षत्र, वर्षा ऋतु व आश्विन मास का कृष्ण पक्ष इस श्राद्ध के लिए उत्तम माना जाता है।

पि तृदो ष से मुक्ति :

: पूर्वजों के कार्यों के फलस्वरूप आने वा ली पी ढ़ी पर पड़ने वा ले अशुभ प्रभा व को पि तृदो ष कहते हैं। पि तृदो ष का अर्थ यह नहीं कि कोई पि तृ अतृप्त हो कर आपको कष्ट दे रहा है। पि तृदो ष का अर्थ वंशा नुगत, मा नसि क और शा री रि क रो ग और शो क भी हो ते हैं। घर और बा हर जो वा यु है वह सभी पि तरों को धूप, दी प और तर्पण देने से शुद्ध और सका रा त्मक प्रभा व देने वा ली हो ती है। इस धूप, श्राद्ध और तर्पण से पि तृलो क के तृप्त हो ने से पि तृदो ष मि टता है। पि तरों के तृप्त हो ने से पि तर आपके जी वन के दुखों को मि टा ते हैं। पि तृयज्ञ और पि तृदो ष एक वैज्ञा नि क धा रणा है।

कैसे बनता है पितृ दोष (Pitru dosh)?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में जब नवम भाव में राहु या केतु स्थित हो तो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित माना जाता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि आपके पूर्वजों का कोई ऋण आपके ऊपर बाकी है या वे आपसे किसी तरह की आशा रखते हैं जो आप किसी कारणवश पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

पितृ दोष (Pitru dosh) से होने वाली समस्याएं

1. जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके यहां संतान होने में समस्याएं आती हैं या संतान नहीं होती। संतान हो जाए तो उनमें से कुछ अधिक समय तक जीवित नहीं रहती। 2. जिन्हें पितृ दोष होता है, ऐसे लोगों के घर में धन की कमी रहती है। किसी न किसी रूप में धन की हानि होती रहती है। 3. जिन्हें पितृ दोष (Pitra dosh) होता है, उनके परिवार में शादी होने में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं। कुछ लोगों को शादी भी नहीं होती। 4. पितृ दोष के कारण घर-परिवार में किसी न किसी कारण झगड़ा होता रहता है। परिवार के सदस्यों में मनमुटाव बना रहता है। 5. अगर बार-बार व लंबे समय तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटना पड़े तो ये भी पितृ दोष का कारण हो सकता है। 6. पितृ दोष होने के कारण परिवार का एक न एक सदस्य हमेशा बीमार रहता है। यह बीमारी भी जल्दी ठीक नहीं होती।

पितृ दोष (Pitru dosh) के अशुभ प्रभाव से बचने के उपाय

1. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन कराएं या भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान करें। 2. श्राद्ध नहीं कर सकते तो किसी नदी में काले तिल डालकर तर्पण करे। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है। 3. विद्वान ब्राह्मण को एक मुट्ठी काले तिल दान करने मात्र से ही पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। 4. श्राद्ध पक्ष में पितरों को याद कर गाय को चारा खिला दे। इससे भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। 5. सूर्यदेव को अर्ध्य देकर प्रार्थना करें कि आप मेरे पितरों को श्राद्धयुक्त प्रणाम पहुंचाएं और उन्हें तृप्त करें।

श्राद्ध में विशेष रूप से खीर क्यों बनाई जाती है

मिठाई के साथ भोजन करने पर अतिथि को पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है। इसी भावना के साथ श्राद्ध में भी पितरों की पूर्ण तृप्ति के लिए खीर बनाई जाती है। इसका मनोवैज्ञानिक भाव यह भी है कि श्राद्ध के भोजन में खीर बनाकर हम अपने पितरों के प्रति आदर-सत्कार प्रदर्शित करते हैं। श्राद्ध में खीर बनाने के पीछे एक पक्ष यह भी है कि श्राद्ध पक्ष से पहले का समय बारिश का होता है। पहले के समय में लोग बारिश के कारण अधिकांश समय घरों में ही व्रत-उपवास करके बिताते थे। अत्यधिक व्रत-उपवास के कारण शरीर कमजोर हो जाता था। इसलिए श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक खीर-पूड़ी खाकर व्रती अपने आप को पुष्ट करते थे। इसलिए श्राद्ध में खीर बनाने की परंपरा है।

भोजन के पांच अंश

पितृपक्ष के दौरान हमारे पितर धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारे पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं। श्राद्ध के समय पितरों के लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूरा होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है।

पितृपक्ष में तर्पण विधि

पितृपक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें।

पितृपक्ष प्रार्थना मंत्र

1- पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।। 2- ॐ नमो व :पितरो रसाय नमो व: पितर: शोषाय नमो व: पितरो जीवाय नमो व: पीतर: स्वधायै नमो व: पितर: पितरो नमो वो गृहान्न: पितरो दत्त:सत्तो व:।।

मान्यता

हिंदू धर्म के अनुसार, किसी के पूर्वज की तीन पूर्ववर्ती पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में निवास करती हैं, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का क्षेत्र है। यह क्षेत्र मृत्यु के देवता यम द्वारा शासित है, जो एक मरते हुए व्यक्ति की आत्मा को पृथ्वी से पितृलोक में ले जाता है। जब अगली पीढ़ी का व्यक्ति मर जाता है, तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में चली जाती है और भगवान के साथ मिल जाती है, इसलिए श्राद्ध का प्रसाद नहीं दिया जाता है। इस प्रकार, पितृलोक में केवल तीन पीढ़ियों को श्राद्ध संस्कार दिया जाता है, जिसमें यम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पवित्र हिंदू महाकाव्यों के अनुसार, पितृ पक्ष की शुरुआत में, सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस क्षण के साथ, यह माना जाता है कि आत्माएं पितृलोक को छोड़ देती हैं और एक महीने तक अपने वंशजों के घरों में रहती हैं जब तक कि सूर्य अगली राशि में प्रवेश नहीं करता है - वृश्चिक - और यह एक पूर्णिमा है। हिंदुओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अंधेरे पखवाड़े के दौरान पहली छमाही में पूर्वजों को प्रसन्न करेंगे।

श्राद्ध से सम्बधित कथा?

🐜जब महाकाव्य महाभारत युद्ध में महान दाता कर्ण की मृत्यु हुई, तो उसकी आत्मा स्वर्ग में चली गई, जहाँ उसे भोजन के रूप में सोना और जवाहरात चढ़ाए गए। हालाँकि, कर्ण को खाने के लिए वास्तविक भोजन की आवश्यकता थी और स्वर्ग के स्वामी इंद्र से भोजन के रूप में सोने परोसने का कारण पूछा। इंद्र ने कर्ण से कहा कि उसने जीवन भर सोना दान किया था, लेकिन श्राद्ध में अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन का दान नहीं किया था। कर्ण ने कहा कि चूंकि वह अपने पूर्वजों से अनजान थे, इसलिए उन्होंने उनकी स्मृति में कभी कुछ दान नहीं किया। संशोधन करने के लिए, कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी गई, ताकि वह श्राद्ध कर सके और उनकी स्मृति में भोजन और पानी दान कर सके। इस अवधि को अब पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।

श्राद्ध के संस्कार:

जो पुरुष श्राद्ध करता है, उसे पहले ही शुद्धिकरण कर लेना चाहिए और धोती पहनने की अपेक्षा की जाती है। वह दरभा घास की अंगूठी पहनते हैं। फिर पूर्वजों को अंगूठी में निवास करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। श्राद्ध आमतौर पर नंगे सीने से किया जाता है, क्योंकि समारोह के दौरान उनके द्वारा पहने गए पवित्र धागे की स्थिति को कई बार बदलना पड़ता है। श्राद्ध में पिंड दान शामिल है, जो पिंडों के पूर्वजों (पके हुए चावल और जौ के आटे के गोले घी और काले तिल के साथ मिश्रित) के लिए एक प्रसाद है। जिसमें भोजन के चारों ओर हाथ से पानी फेरा जाता है। इसके बाद विष्णु (दरभा घास, एक सोने की मूर्ति, या शालिग्राम पत्थर के रूप में) और यम की पूजा की जाती है। भोजन की कई भागों में बांटा जाता है, जिसका एक भाग कौआ को दी जाती है। कौआ को यम या पूर्वजों की आत्मा का दूत माना जाता है। एक गाय और एक कुत्ते को भी खिलाया जाता है, और ब्राह्मण पुजारियों को भी भोजन कराया जाता है। इन सबके बाद परिवार के सदस्य भोजन कर सकते हैं। संक्षिप्त नारदपुराण (पृष्ठ १२० ) में भी इस उल्लेख किया गया है और मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं –

अमूर्तानां च मूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्! नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां योगचक्षुषाम्।।

अर्थ : जिनका तेज सब ओर प्रकाशित हो रहा है, जो ध्यानपरायण तथा योगदृष्टि सम्पन्न हैं, उन मूर्त पितरों को तथा अमूर्त पितरों को भी मैं सदा नमस्कार करता हूं।

पितरों के निधन की तिथि नहीं पता तो इस दिन करें श्राद्ध कर्म


🍂कई कारणों वश ऐसा हो सकता है कि पितरों के निधन की तिथि किसी को पता ना हो. हिंदू पंचांग में तिथि का बहुत महत्त्व होता है ऐसे में अगर आपको अपने पितरों की तिथि को लेकर कोई कंफ्यूज़न है या आपको याद नहीं या किसी कारणवश आपको नहीं पता तो आप उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष में जरुर करें. लेकिन जिन पितरों की तिथि पता नहीं हो उनका श्राद्ध कर्म कब करना चाहिए इस बारे में हमारे शास्त्रों में बताया गया है. तो आइए जानते हैं अगर पितरों की तिथि पता ना हो तो उनका श्राद्ध कब करना चाहिए और श्राद्ध कर्म कैसे करते हैं. - ऐसी परिस्थिति में शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का महत्व बताया गया है. समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किए जाने के कारण ही इस तिथि को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है. - सर्वपितृ अमावस्या के दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए और गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए. - इसके बाद घर में श्राद्ध भोज बनाएं किसी पंडित को घर बुलाएं या फिर पितरों के खाने की थाली में भोजन सजाकर पानी के साथ मंदिर में पंडित को देकर विधि-विधान से श्राद्ध करवाएं. - श्राद्ध भोज से गाय, कुत्ते, कौए, देव और चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए. पितरों से श्रद्धापूर्वक मंगल की कामना करनी चाहिए. - सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है. - सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते है. स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें. - ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः मंत्र का जाप इस दिन करना लाभदायक होता है. - कभी-कभी जाने-अंजाने हम उन तिथियों को भूल जाते हैं, जिन तिथियों को हमारे पूर्वज हमें छोड़ कर चले गए थे। इसलिये अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिए एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान भी हमारे शास्त्रों में बताया गया है। .